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Friday, August 11, 2017
i am a writer & journalist, socialist,theaterist,author,poet and water researcher.
Monday, February 20, 2017
कॉनो क्रिस्टिल्स : इन्द्रधनुषी रंगों वाली नदी
सौन्दर्य-लालित्य-माधुर्य, रहस्य-रोमांच का कहीं कोई अंत नहीं। जी हां, प्रकृति ने हमेशा दुनिया-धरती को अद्भुत उपहारों से लबरेज रखा।
सौन्दर्य व लालित्य मन-मस्तिष्क के तारों को झंकृत कर देता है। सौन्दर्य व लालित्य का आकर्षण ही होता है, जो मीलों से पर्यटक एक झलक पाने के लिए भागते-दौड़ते चले आते हैं। 'पानी रे पानी" तेरा रंग कैसा, जिसमें मिला दो लगे उस जैसा.... यह कथ्य-तथ्य व गुनगुनाना नैसर्गिक सौन्दर्य के सामने सटीक नहीं बैठता। वैश्विक मानचित्र-पटल पर देखें तो पानी भी अपने वैशिष्ट्य से देश-दुनिया को आकर्षित करता है। जी हां, कोलम्बिया की नदी 'कॉनो क्रिस्टल्स" अपनी विशिष्टता के कारण देश-दुनिया में आकर्षण का केन्द्र बनी हुयी है। इस नदी का सामान्य पानी जुलाई से नवम्बर की अवधि में इन्द्रधनुषी रंग धारण कर लेता है।
कोलम्बिया की इस नदी को दुनिया की सबसे सुन्दर नदी माना जाता है। कोलम्बिया के प्रांत मेटा में यह विशिष्ट नदी स्थित है। सेरानिया डे ला मॉकरेना के रुाोत वाली यह एक सहायक नदी है। मूलत: कॉनो क्रिस्टल्स गुयाबेरो नदी की सहायक नदी है। इस नदी व चट्टानों को दुनिया की सबसे पुरानी प्राकृतिक सम्पत्तियों में माना जाता है। यहां के पठार व चट्टानों की श्रंखला करीब 1.2 अरब साल पुराने माने जाते हैं।
करीब सौ किलोमीटर लम्बी इस बहुआयामी कॉनो क्रिस्टिल्स नदी को आम तौर पर कोलम्बिया में पांच रंगों की नदी एवं इन्द्रधनुष रंगों वाली नदी भी कहा जाता है। इस नदी में झरनों की एक लम्बी श्रंखला है। इस नदी का जल एक विशेष अवधि-विशेष समय पर हरा, पीला, नीला, लाल व काला हो जाता है। खास तौर इस नदी का जल लाल हो जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो इस नदी का जल जुलाई से नवम्बर की अवधि में खास तौर से रंगीन होता रहता है। जल का रंगीन होने के एक बड़ा कारण विभिन्न प्रजातियों के पौधों को माना जाता है।
इस नदी में मैकरेनिया क्लाविगेरा प्रजाति के पौधे बड़ी तादाद में हैं। इस पौधे की रसायनिक प्रक्रिया के कारण ही जल का रंग बदलता रहता है। इस नदी की तलहटी खास तौर से कंकड़ व पथरीली चट्टानों वाली है लिहाजा जल की निर्मलता भी अद्वितीय है। इस नदी का जल भले ही रंगीन हो लेकिन निर्मलता विशेष रहती है। कोलम्बिया का यह क्षेत्र वर्षा वन क्षेत्र के रुप में जाना-पहचाना जाता है। इसका जल गर्म व शीतल होता है।
यह परिवर्तन समय-समय पर होता रहता है। यह नदी शीतल जलचरों के लिए बेहद अनुकूल मानी जाती है। इसमें पक्षियों की करीब चार सौ बीस प्रजातियां पायी जाती है। इतना ही नहीं उभयचरों की भी दस व सरीसृपों की 43 प्रजातियां संरक्षित हैं।
'कॉनो क्रिस्टिल्स नदी" में जलीय पौधों की लम्बी श्रंखला पुष्पित-पल्लवित होती है लेकिन इस खूबसूरत नदी में मछलियां नहीं पायी जातीं। इन्द्रधनुषी रंगों वाली कॉनो क्रिस्टिल्स नदी दुनिया के लिए कौतुहल का विषय बनी है। पानी का रंग बदलने के कारण देश-दुनिया के पर्यटकों के लिए कॉनो क्रिस्टिल्स नदी आकर्षण का केन्द्र बनी है।
i am a writer & journalist, socialist,theaterist,author,poet and water researcher.
Sunday, February 19, 2017
'ब्लू होल" : मनोरंजकता में भी खतरा
'सौन्दर्य शास्त्र" का कथ्यात्मक तथ्यात्मक आलोक निश्चय ही किसी को भी लुभाने में समर्थ कहा जाएगा। प्राकृतिक सौन्दर्य जहां एक ओर मन-मस्तिष्क को प्रफुल्लित करता है तो वहीं इसमें खतरे भी कम नहीं। लाल सागर मिरुा तट पर प्राकृतिक सौन्दर्य का नायाब स्थल है।
इस स्थल को ब्लू होल के नाम से दुनिया में जाना-पहचाना जाता है। गोताखोर समुदाय का यह एक अति पसंदीदा स्थल है लेकिन ब्लू होल गोताखोरों के लिए बेहद खतरनाक भी माना जाता है। देश दुनिया के तमाम पर्यटक इस स्थल पर गोतोखोरी देखने जाते हैं। इसे 'दुनिया के सबसे खतरनाक गोता स्थल" व 'गोताखोर के कब्रिास्तान" के तौर भी जाना जाता है।
करीब सौ मीटर गहराई वाले इस ब्लू होल में करीब तीस मीटर लम्बी सुरंग भी है। हालांकि इसका प्रवेश स्थल करीब छह मीटर चौडा़ई वाला है। सुरंग को कट्टर के रुप में जाना जाता है। इस इलाके में मंूगा व चट्टानी मछली की उपलब्धता बहुतायत में है। मिरुा शासन ने इस स्थल पर खास तौर से गाइड्स व प्रशिक्षित कर्मचारी तैनात किए हैं जिससे किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना को रोका जा सके। हालांकि मनोरंजक ड्राइविंंग के लिए बड़ी तादाद में गोताखोर यहां आते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो अति गहराई में नाइट्रोजन रसायन का प्रभाव मिलता है।
नाइट्रोजन का प्रभाव गोताखोरों के लिए बेहद खतरनाक होता है क्योंकि इससे गोताखोरों में शराब का नशा जैसा होने लगता है। नशा का प्रभाव शरीर में होते ही गोताखोरों का फिर बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में गोताखोर की मौत हो जाती है। ब्लू होल बेहद आकर्षक अर्थात मेहराब जैसा काफी कुछ प्रतीत होता है। ब्लू होल की गहराई में धीरे-धीरे गैसों के मिश्रित प्रभाव से गोताखोर को नींद आने लगती है। बस गोताखोरों की मौत के यही कारण होते हैं। हालांकि शासकीय गाइड्स निश्चित सीमा से अधिक आगे जाने के इजाजत नहीं देते हैं। फिर भी गोताखोर जोश व मनोरंजकता में निश्चित दायरे से कहीं आगे बढ़ जाते हैं। जिससे हादसे हो जाते है।
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